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Officials say a gunman's attack that killed 10 was a racially motivated hate crime -- Trending News

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 A shooter wearing a military-style dress and body defensive layer started shooting with a rifle at a store in Buffalo, N.Y., killing 10 individuals in a shooting official are researching as a racially propelled can't stand wrongdoing. The supposed shooter, who live-streamed the assault on the web, was summoned on a first-degree murder accusation hours after he was arrested, police said. An aggregate of 13 individuals was taken shots at the Tops Friendly Market on Saturday evening, authorities said at a question and answer session. Of the 13 casualties, four were store workers, including a safety officer, and the rest were clients. Eleven of the casualties were Black, and two were white, said Buffalo Police Commissioner Joseph Gramaglia. "It was directly up a racially propelled disdain wrongdoing," said Erie County Sheriff John Garcia. "This was unadulterated malevolence." New York Gov. Kathy Hochul considered the shooter a "racial oppressor who has partici

. आरक्षण पर बहस क्यों नहीं?

राजस्थान में गुर्जरों ने आरक्षण को लेकर पिछले 15 दिनों से रेल और सड़क यातायात को बाधित कर रखा है। इस आंदोलन ने पूरी आरक्षण व्यवस्था पर कुछ सवाल खड़े किए हैं। संविधान निर्माताओं ने आरक्षण की व्यवस्था इसलिए रखी कि समाज की मुख्यधारा से कटे हुए लोग समाज के अन्य वर्गों के साथ कदमताल कर सकें। उनको विशेष रियायतें, सुविधाएं और सरकारी नौकरियों और राजनीति में आरक्षण दिया गया। और प्रावधान भी किया गया कि प्रत्येक दस वर्ष में आरक्षण पर पुनर्विचार होगा। जिन समुदायों को आरक्षण का समुचित लाभ मिल गया है उनको आरक्षण के कोटे से बाहर किया जाएगा। लेकिन वोट की राजनीति ने ऐसा कमाल किया कि आरक्षण जैसे संवदेनशील मुद्दे पर ही राजनीति होने लगी। जिन जातियों को आरक्षण मिला उनको नेता उसको बचाने के नाम पर और जिन जातियों को नहीं मिला वो दिलवाने के नाम पर राजनीति की रोटियां समाज की भट्टी पर सेंकने लगे। किसी ने भी समाज केे अन्य वर्गों के बारे में सोचने की जहमत नहीं उठाई।जो जातियां आरक्षण की वजह से विकसित हो चुकी हैं वे भी अपने अन्य पिछड़े भाईयों के लिए इसे छोडऩा नहीं चाहती। हिन्दुस्तान जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है

रिश्तों का टिकाऊपन

रिश्तों का टिकाऊपन, अब प्यार पर निर्भर नहीं, वह निर्भर करता है, अर्थ की शक्ति पर, सुख-सुविधाओं के सामान पर, रिश्तों की जितनी अधिक ज़रूरतें पूरी होंगी, प्यार गहराता जाएगा, यदि आप ऐसा न कर सके, रिश्तों का विशाल भवन, रेत के महल की तरह, कुछ पल में भरभरा कर गिर जाएगा ।

क्या हम तालिबान से कम हैं?

आए दिन न्यूज चैनलों और अखबारों में तालिबान की कोई न कोई कारिस्तानी ब्रेकिंग न्यूज और मुख्य हेडलाइंस बनती है। हम भी इन खबरों को बड़े चटखारे लेकर पढ़ते और सुनते हैं। तालिबान और उसके इस अमानवीय रवैये को कोसते नहीं थकते। ऊपर से सलाह भी दे देते हैं कि जब दुनिया इतनी तेजी से बढ़ रही है और ये तालिबानी वहीं के वहीं पाषाण युग में जी रहे हैं। इन तालिबानियों को भी अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए। लेकिन हम भारतीयों की आदत है कि हम केवल दूसरों की बातें करते हैं अपने बारे में कुछ सुनना नहीं चाहते। हम क्यों भूल जाते हैं कि हमारे देश में भी तालिबान से कम स्थिति नहीं है। वहां आंतकवाद तालिबान के रूप में है लेकिन हमारे यहां तो कई रूपों में तालिबान से भी बड़ी ताकतें मौजूद हैं। तालिबान के लड़ाकों को तो हम पहचान सकते हैं क्योंकि उनके हाथों में बंदूक होती है गोला बारूद होता है। लेकिन हमारे यहां के तालिबानी तो बिना हथियार के ही उनसे भी ज्यादा खतरनाक हैं। हाल ही मेंं तालिबानियों ने जब एक महिला को कोड़ों से पीटा तो पूरी दुनिया ने उस वीडियो को देखा और मानवीयता की दुहाई दी। जब एक व्यक्ति को उन्होंने सरेआम गोलियो

जाति के भंवर में फंसा लोकतंत्र

भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा महापर्व होने जा रहा है। सब और तैयारियां जोरों पर हैं। सभी राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपनी गोटियां फिट करने में लगे हुए हैं। और जायज और नाजायज तरीके से सत्ता हथियाने के फिराक में है। यहां तक की राजनीति में शुचिता और शालीनता की बात करने वाले राजनीतिक दल भी साध्य को सफल करने में जुटे हुए हैं। उनको साधनों की चिंता नहीं है। भले ही ये साधन कैसे भी हों। इनको तो बस हर हाल में साध्य प्राप्त करना है। लेकिन इस लोकतंत्र का सबसे दुखद और भयावह पहलू जो उभर कर आया है वह है जातीय विद्वेषता का। जिसने पूरे समाज को अपने आगोश में ले लिया है। कभी कबीर ने कहा था कि जाती न पूछो साधु की पूछ तिए ज्ञान। लेकिन आज तो नेताजी की जाति पहले पूछी जाती है बाद में उसके टिकट का फैसला होता है। देखा जाता है कि संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवार का जातीय दबदबा है या नहीं। आज हम २१वीं शदी की बात कर रहे हैं और भारत आईटी और विज्ञान के क्षेत्र में कुलांचे मार रहा है। चमचमाते मॉल, उभरते शिक्षा प्रतिष्ठान निश्चित रूप से हमारी विश्व में एक अलग पहचान कायम कर रहे हैं। आज भारत दुनिया की सबसे बड़ी